नाट्यशास्त्र, द्वितीय भाग:-प्रेक्षागृह

प्रेक्षागृह डॉ दीपक प्रसाद (रंगकर्मी) सहायक आचार्य रांची विश्वविद्यालय रांची जैसा कि मैंने नाट्यशास्त्र के अध्यायों की प्रथम भाग में चर्चा कर चुके हैं। हम सभी जानते हैं कि भरत नाट्यशास्त्र के दूसरे अध्याय में प्रेक्षागृह के बारे में वर्णन किया गया है। ऐसा माना जाता है की भरत नाट्यशास्त्र को प्राय ईशा की पहली अथवा दूसरी शताब्दी में संकलित किया गया होगा। इस संदर्भ में विभिन्न विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। इसी में हमें नाट्य मंडप के प्राचीन स्वरूप का संकेत प्राप्त होता है, जो पहाड़ों की गुफा में बनता था-"शैल गुहाकारों"। यह तो सर्वविदित है की पहाड़ों की कंन्दराए प्राय नागरिकों की आमोद- प्रमोद के काम आती थी। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए की इस गुफा में भरत के पूर्व नाटक भी खेले जाते रहे होंगे। अभी तक नाट्य मंडप के जो प्रमाण भारत में प्राप्त हुए हैं उनमें ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे ठोस जो है वह सीतावेगा तथा जोगीमारा गुहा के मंडप हैं। जो अभी वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य के सरगुजा प्रांत में अवस्थित है। सीतावेगा गुफा का आकार प्रकार तथा उसके समक्ष बना दर्शकों को बैठने के...