कबड्डी KABADDI PLAY
कबड्डी खेल
जैसा कि हम सभी जानते हैं की कबड्डी का खेल भारत का एक ऐसा खेल है जो सबसे अधिक ग्रामीण इलाकों में खेला जाता रहा है। यह खेल सबसे अधिक सस्ता और सबसे अधिक लाभप्रद भी होता है। इसे खेलने के लिए कोई विशेष चीजों की आवश्यकता नहीं होती है। जब भी इच्छा करे कुछ लोग इकट्ठे होकर शुरू हो सकते हैं। इसमें व्यायाम और प्राणायाम दोनों का अभ्यास साथ-साथ हो जाता है। अगर बच्चों को नियमित रूप से कबड्डी का खेल खिलाई जाए तो उनके शरीर और मस्तिष्क का बहुत अच्छा विकास होता है। कबड्डी के खिलाड़ियों को कभी रोग सता नहीं सकते। इसके साथ ही साथ दुनिया की परेशानियां एवं समस्याएं भी खिलाड़ियों के मस्तिष्क को हिला नहीं सकतीं।
इस खेल में खिलाड़ी को कबड्डी!कबड्डी!बोलते हुए शरीर को बहुत ही फुर्ती के साथ विरोधी दल के खिलाड़ियों की हरकतों पर भी बराबर ध्यान बनाए रखना पड़ता है। इस प्रक्रिया में खिलाड़ी का जरा सा भी ध्यान भटक गया तभी वह मारा जाएगा। इस खेल में एकाग्रचित्त होने की बहुत आवश्यकता होती है। अगर विरोधी पाले में पकड़े जाने के बाद भी खिलाड़ी कबड्डी, कबड्डी बोलता हुआ बीच की रेखा को छूने की कोशिश करता है। इस कार्य के लिए बहुत ही शारीरिक शक्ति, मानसिक एकाग्रता की जरूरत होती है और हिम्मत ना हारना अपने विश्वास पर अडिग रहना यह बहुत ही जरूरी होता है। साथ ही साथ खिलाड़ी में साहस, सांस रोकने की क्षमता, फुर्ती और तुरंत निर्णय लेने की मानसिक शक्ति चाहिए होती है। इस खेल के ऊपर कई सारी फिल्म हमारे देश में बन चुकी है।
वैज्ञानिकों द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि सांस पर काबू पाने में मनुष्य अपने शरीर और मन के अंदर की क्रियाओं पर भी काबू पा सकता है।
कबड्डी बोलकर आने वाले खिलाड़ी को पकड़ने के लिए पूरी दल में आपसी सहयोग और अनुशासन होना बहुत ही जरूरी होता है। इस प्रकार खिलाड़ी खेल- खेल में कई गुणों को सीख जाता है जो उनके जीवन में खेल के मैदान के बाद भी सहायक होता है। कबड्डी कबड्डी बोलने से फेफड़ों में हवा भरने की प्रक्रिया बहुत ही लाजवाब हो जाता है और साथ में मुख और चेहरे की बाहरी बनावट की भी कसरत पूरे तरीके से हो जाती है। इस प्रक्रिया से गुजरते ही खिलाड़ियों के चेहरे पर तेज और सुंदरता निखार लेने लगती है। यह देखा गया है कि शारीरिक और मानसिक रूप से पिछड़े बच्चों को अगर कबड्डी का खेल रोज खिलाया जाए तो वह कुछ ही महीनों में अपनी कमजोरियों पर विजय पाकर पूरी तरह से स्वस्थ और प्रतिभाशाली बन सकते हैं।
बड़े दुख के साथ यह व्यक्त कर रहा हूं कि अपने प्राचीन महान ऋषि मुनियों द्वारा बनाए गए इस खेल को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरी मान्यता और सम्मान आज तक नहीं मिल पाया है इसके लिए चाहे जो भी जिम्मेदार हों, लेकिन इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।
कहा जाता है कि दुनिया के किसी भी खेल की तुलना में कबड्डी में खिलाड़ी के शारीरिक और मानसिक विकारों तथा रोगों को दूर करके उसकी शक्तियों में आश्चर्यजनक वृद्धि करने की शक्ति है। हमारी सरकार के खेल विभाग को चाहिए की इस दिशा में नए अनुसंधान करके इस खेल को संसार के सामने लाने की जरूरत है।
कबड्डी की हर दल में 12 खिलाड़ी होते हैं। जिनमें से सात-सात खेलते हैं। बाकीं खिलाड़ी बाहर बैठ इंतजार करते हैं। दल का कप्तान खेल के बीच में दल के तीन खिलाड़ियों को अपने-अपने दल में एक बार बदल सकता है।
20:20 मिनट की दो पालियों में यह खेल पूरा होता है। लड़की खिलाड़ियों के लिए यह समय 15:15 मिनट का होता है। बीच में 5 मिनट का विश्राम मिलता है। एक टीम का खिलाड़ी कबड्डी बोलते हुए दूसरी टीम के पाले में जाता है और जितने खिलाड़ियों को छूकर बिना सांस तोड़े और बिना पकड़े हुए अपने पाले में आ जाता है तो उसे उतने ही अंक मिल जाते हैं। अगर विरोधी खिलाड़ियों को पकड़ लिया जाता है और उसकी सांस समाप्त हो जाती है तो उसे मरा हुआ घोषित कर बाहर बैठा दिया जाता है।
इस प्रकार जिस दल ने कबड्डी बोलने वाले को पकड़ा होता है उसे 1 अंक मिलता है। तदुपरांत दूसरे दल का खिलाड़ी कबड्डी कबड्डी बोलते जाता है। जो दल निर्धारित समय में अधिक से अधिक अंक प्राप्त कर लेती है तो उसे विजयी दल घोषित किया जाता है।
मैच में बराबर-बराबर अंक मिलने पर खेलने के लिए दोनों पक्ष के खिलाड़ियों को 5 मिनट का समय और अतिरिक्त दिया जाता है।
मैदान की बनावट पुरुषों के लिए 12.5 मीटर लंबा और 10 मीटर चौड़ा होता है। वहीं महिलाओं के लिए 11 मीटर लंबा और 8 मीटर चौड़ा। जूनियर लड़कियों के लिए 9.5 मीटर लंबा और 6.5 मीटर चौड़ा। पोशाक के तौर पर पिछले हिस्से में लिखे अंको वाली जर्सी एवं नेकर और पैरों में रबर के जूते पहन सकते हैं। वैसे तो गांव के खिलाड़ी पैरों में कुछ नहीं पहनते।
विशेष निर्देश:-
विरोधी दल के पाले में एक से अधिक कबड्डी बोलने वाला आक्रामक नहीं जाएगा।
विरोधी दल आक्रामक को पकड़ने पर जबरदस्ती उसका मुंह बंद नहीं कर सकती।
आउट हुए या मारे गए खिलाड़ी उसी क्रम में जीवित होंगे जिस क्रम में मरे थे।
यदि दल में एक या दो खिलाड़ी बचे रहें और कप्तान सारी टीम को बुलाना चाहे तो विरोधी टीम को इतने ही अंक मिलते हैं जितने की खिलाड़ी बाद में बचे थे। इसके अलावा 2 अंक और मिलेंगे जिन्हें लोना अंक कहते हैं।
विरोधी खिलाड़ी के बाल, पोशाक पकड़ना, चांटा लगाना, घुसा मारना नियम के ख़िलाफ़ है।
खिलाड़ियों के नाखून कटे होने चाहिए और निकर के नीचे जांघियां पहनना जरूरी है।
खिलाड़ी के चोट लग जाने पर कप्तान रेफरी से टाइम आउट (अतिरिक्त समय) ले सकता है।
यह तमाम निर्देशों के बाद खुशी की बात यह है कि अब भारत सरकार के खेल मंत्रालय द्वारा कबड्डी की ओर भी ध्यान दिया जाने लगा है और इसकी अखिल भारतीय प्रतियोगिताएं आयोजित होने लगीं है। पिछले कई वर्षों से हमारे कुछ सेलिब्रिटी इसे व्यवसायिक तौर पर भी अपना रहे हैं।
डॉ दीपक प्रसाद
रांची विश्वविद्यालय रांची
8935984266
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