नई शिक्षा नीति(new education policy)
नई शिक्षा नीति और भाषाई चिंतन
डॉ दीपक प्रसाद
सहायक आचार्य
रांची विश्वविद्यालय रांची, झारखंड
उचित और बुनियादी शिक्षा प्राप्त करना भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है। खुशहाल जीवन व्यतीत करने के लिए तैयार होने वाले युवाओं को शिक्षा बेहद महत्वपूर्ण है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पहले की शिक्षा नीति का पूर्ण मूल्यांकन है। यह नई संरचनात्मक रूपरेखा द्वारा शिक्षा की संपूर्ण प्रणाली का परिवर्तन है। यह शिक्षा नीति एक उच्चस्तरीय और ऊर्जावान नीति में बदली जा रही है। विद्यार्थियों को उत्तरदाई और कुशल बनाने का एक अनोखा प्रयास किया जा रहा है। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई है जिसे सभी के परामर्श से तैयार किया गया इसे लाने के साथ ही साथ देश में शिक्षा पर व्यापक चर्चा आरंभ हो गई है। शिक्षक के संबंध में गांधी जी ने कहा था, बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण विकास एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है। इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद का कहना था कि मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। तमाम परिचर्चाओं के बाद हम देखेंगे कि 1986 की शिक्षा नीति में ऐसी क्या कमियां रह गई थीं जिन्हें दूर करने के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लाने की आवश्यकता पड़ी। हमारा अनुभव भी कहता है कि वर्षों से चली आ रही शिक्षा नीति में कुछ बदलाव होना आवश्यक है जिससे समय और परिस्थिति को देखते हुए आज के परिवेश के अनुसार युवाओं को शिक्षा रोजगारोन्मुख देना चाहिए ताकि वह अपना जीवन समार सके। साथ ही साथ प्रश्न यह भी उठता है की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति उन उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम होगी जिसकी परिकल्पना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद ने देखा था।
हमें सबसे पहले यह जानना और समझना पड़ेगा की शिक्षा क्या है? इस पर अगर हम गौर करते हैं तो पाते हैं कि शिक्षक का शाब्दिक अर्थ होता है सीखने और सिखाने की क्रिया, परंतु अगर इसके व्यापक अर्थ को देखें तो शिक्षा किसी भी समाज में निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है जिसका कोई उद्देश्य होता है और जिससे मनुष्य की आंतरिक शक्तियों का विकास हो पाता है। व्यक्ति के व्यवहार को उन्नत बना पाता है, परिष्कृत किया जाता है। व्यक्ति के आंतरिक चेतना को जगाने का काम, समारने का काम शिक्षा के द्वारा ही किया जा सकता है। शिक्षा द्वारा ज्ञान कौशल में वृद्धि कर मनुष्य को योग्य नागरिक बनाया जाता है, एक अच्छा और सच्चा इंसान बनाया जाता है उसे अपने आप से रूबरू कराया जाता है।
गौरतलब है की नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा के साथ ही साथ मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वारा देश में स्कूल एवं उच्च शैक्षणिक संस्थानों में परिवर्तनकारी सुधारों की अपेक्षा की गई है।
34 वर्षों के अंतराल के बाद 29 जुलाई 2020 को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति अस्तित्व में आई। हमारी केंद्रीय सरकार द्वारा मंजूरी मिलते ही शिक्षा जगत में रचनात्मक क्षमता को बढ़ाकर सीखने की प्रक्रिया को और अधिक कुशल बनाना इस नीति का उद्देश्य के साथ नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी गई। पहले की शिक्षा प्रणाली मूल रूप से सीखने और परिणाम देने पर आधारित थी। पहले विद्यार्थियों का आकलन प्राप्त अंकों के आधार पर किया जाता था। यह विकास की दृष्टिकोण से एकल दिशा वाला दृष्टिकोण था। वही नई शिक्षा नीति एक बहू आयामी विषयक दृष्टिकोण की प्रासंगिकता पर केंद्रित है। जिसका उद्देश्य विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास करना है। इस नीति की ख़ास बात यह है कि कोई भी छात्र एक कुशल बनाने के साथ-साथ जिस भी क्षेत्र में वह रुचि रखता है उसी क्षेत्र में उन्हें प्रशिक्षित करना है। साथ ही साथ शिक्षक की शिक्षा और प्रशिक्षण प्रक्रिया के सुधार पर भी बल दिया गया है।
शिक्षा की व्यवस्था हो चाहे व्यवस्था की शिक्षा दोनों की स्थिति में भाषा का महत्व बहुत बढ़ जाता है। यह सर्वविदित है की व्यवहारिक जीवन शैली हो या अध्ययन शीलता का ककहरा सीखना हो, भाषा के बिना सब व्यर्थ है। बिना भाषा के सीखे समझे और जाने कुछ भी सीखना असंभव है। बात जब ककहरे की हो तो मातृकुल परिवेश की भाषा मातृभाषा का महत्व और भी बढ़ जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत प्रसिद्ध आधुनिक काल के कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने निज भाषा का महत्व बताते हुए लिखा भी है कि *निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल*।। इसके साथ भारत की निज भाषा से भारतेंदु जी का तात्पर्य हिंदी सहित भारतीय भाषाओं से रहा है। वे आगे लिखते हैं की अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीण। निज भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।। यानी अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषाओं में प्राप्त शिक्षा से आप प्रवीण तो हो जाओगे किंतु सांस्कृतिक एवं व्यवहारिक दृष्टिकोण से हीन ही रहोगे।उसी काल में भारतेंदु जी ने मातृभाषा में शिक्षा की अवधारणा को भी साकार करने का अनुग्रह किया है। इसी कविता में वे फिर लिखते हैं कि और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात। निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।। इस प्रकार भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक वैभव की स्थापना का प्रथम पायदान निज भाषा यानी मातृभाषा में शिक्षा ही निहित है। बिना मातृभाषा के ज्ञान और अध्ययन के सब व्यवहार व्यर्थ ही माने गए हैं। हमारे ऊपर बाहरी भाषाओं का इतना दबाव क्यों है जो व्यक्ति को अवसादग्रस्त कर साथ ही साथ जीवन की बाजी लगाने के लिए भी विवश कर रहा है। इस प्रकार का अवलोकन विश्लेषण चिंतन कहीं पर भी सुनाई नहीं पड़ता आज भी अंग्रेजी भाषा का हमारे ऊपर किस कदर नई पीढ़ी को प्रताड़ित कर रहा है। सच बात तो यह है की आजादी के बाद भी मातृभाषा हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के उत्थान का जो सपना देखा गया था अब वह सपना दस्तावेजों कार्यक्रमों तथा संस्थाओं में दबकर सांसे गिन रही है। कुछ ही दुखद घटनाएं संचार माध्यमों से प्राप्त हो पाते हैं इस समस्या का स्वरूप अनेक प्रकार से चिंतित करने वाला है। हमारी मातृभाषा से बच्चों का परिचय घर के परिवेश से ही शुरू हो जाता है। मातृभाषा में बातचीत करने और चीजों को समझने, समझाने की क्षमता के साथ विद्यालय में दाखिल होते हैं। अगर उनकी इस क्षमता का इस्तेमाल पढ़ाई के माध्यम से मातृभाषा का चुनाव करके किया जाए तो सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। यूनेस्को ने मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए भाषाई विविधता को संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की शुरुआत भी की है।
हमारा मानना है की भारती भाषाओं के शिक्षण और सीखने को हर स्तर पर स्कूल और उच्च शिक्षा के साथ एकीकृत किया जाए। भाषाओं के प्रसांगिक और जीवंत बने रहने के लिए इन भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों, कार्य पुस्तिकाओं, वीडियो, नाटक, कविताओं, उपन्यासों, पत्रिकाओं आदि आदि माध्यमों सहित उच्च गुणवत्ता वाली प्रकाशित सामग्री की एक स्थित धारा होनी चाहिए।
हमारी नई शिक्षा नीति भारतीय भाषाओं को नियमित इस्तेमाल शैक्षणिक सामग्री बनाने शिक्षकों के प्रशिक्षण मातृभाषा को निर्देश भाषा के रूप में अपनाने जैसे प्रयासों को बढ़ावा देती है। एनसीपी सभी भाषाओं और मातृ भाषाओं को बढ़ावा देने पर भी जोर देती है। साथ ही साथ इससे राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषा कला और संस्कृति का प्रचार न केवल राष्ट्र के लिए बल्कि व्यक्ति के लिए भी महत्वपूर्ण है। सांस्कृतिक जागरूकता और अभिव्यक्ति बच्चों में विकसित होना जरूरी है। इस से आने वाली युवा पीढ़ियों में विभिन्न संस्कृतियों की पहचान सुदृढ़ हो सकेगी। साथ ही साथ सभी प्रकार की भारतीय कलाओं को शिक्षा के सभी स्तरों पर स्थापित किया जाए। स्कूली शिक्षा में बच्चों को भाषा कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्कूल के सभी स्तरों पर नाटक, संगीत कला और शिल्प पर अधिक जोर दिया जाए। बहुभाषावाद को बढ़ावा दिया जाए। इसके लिए त्रिभाषा सूत्र का भी कार्यान्वयन हो। स्थानीय भाषा में शिक्षण सामग्री एवं शैक्षणिक कार्य हो। प्रशिक्षकों के रूप में उत्कृष्ट स्थानीय कलाकारों लेखकों शिल्प कारों और अन्य विशेषज्ञों की भर्ती हो मानविकी विज्ञान कला शिल्प और खेलों में जनजातीय और स्थानीय ज्ञान सहित पारंपरिक भारतीय ज्ञान को पाठ्यक्रम में शामिल भी किया जाए।
भारतीय भाषाओं में विभिन्न कार्यक्रम तुलनात्मक साहित्य रचनात्मक लेखन कला, संगीत, नाटक, दर्शन देश में विकसित किए जाएं।बहराल नई शिक्षा नीति में कला संग्रहालय पुरातत्व नाटक, संगीत, ग्राफिक डिजाइन उच्च शिक्षा प्रणाली के भीतर वेब डिजाइन पर भी जोर दिया गया है इससे यह लगता है कि शैक्षणिक स्तर पर छात्रों के बीच केवल विषय का भार ना हो उनके मनोरंजन खेलकूद उनके हुनर को बढ़ावा देने के लिए यूं कहें की व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास की नीति है नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और इसमें इसका सहयोग कर रहा है भारतीय भाषाएं मातृभाषाएं जिसके बिना असंभव है कुछ भी आगे करना।
डॉ दीपक प्रसाद
सहायक आचार्य
8935984266
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